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दो से चार -05-Jan-2022

भाग 8 


लव कुमार और आशा के बीच व्हाट्स ऐप पर चैटिंग शुरू हो चुकी थी । चैटिंग का समय दोपहर के दो बजे से लेकर चार बजे तक रखा गया था । आज की चैटिंग के बाद आशा के संसार में अनगिनत सितारे जगमगाने लगे थे । ख्वाबों का लंबा कारवां चलने लगा । बहारों की महफ़िल सज गई । उम्मीदों ने डेरा डाल लिया । उसकी आंखों के सामने एक अनजाना सा चेहरा बार बार आ रहा था । लव कुमार की रचनाओं और चैटिंग के आधार पर उसने मन ही मन उनकी एक फोटो अपने दिमाग में सजा ली थी । "साहित्यिक एप" पर लव कुमार ने अपनी कोई भी पिक नहीं डाली थी । आशा ने अपनी कल्पना से एक सुंदर सी इमेज बनाकर अपने दिलो दिमाग में सजा ली थी । उस काल्पनिक तसवीर से वह घंटो बातें किया करती थी । उस तसवीर से अपने सारे सुख दुख शेयर करती थी ।

लव कुमार ने चैटिंग का समय दोपहर में दो से चार फिक्स तो कर दिया मगर उन्हें क्या पता कि बाकी के 22 घंटे कैसे कटेंगे ?   कल दो बजे तक इंतजार कैसे करेगी वो ? उसे ऐसा  सोचती थी कि बस, जल्दी से दो बज जाएं और फिर से उनसे चैटिंग शुरू हो जाए । और ये चैटिंग चलती रहे , चलती ही रहे । अनंत काल तक ।

समय गुजारना उसके लिए बड़ा मुश्किल हो रहा था । कोरोना का विकट समय चल रहा था । पूरा देश लॉकडाउन में बंद था । पुलिस की बहुत ज्यादा सख्ती थी । कोई बाहर जा नहीं सकता था । मोबाइल पर मैसेज की बाढ़ आ रही थी जो बुरी तरह डरा रही थी । टेलीविजन देखने का मन नहीं था । बस, रामायण और महाभारत देख लेती थी वह । एक साहित्यिक एप ही था जो उसके जीने का सहारा बन गया था । जब कुछ और नहीं सूझा तो वह साहित्यिक एप खोलकर बैठ गई । लोग कोरोना पर बहुत कुछ लिख रहे थे । वह भी कुछ सोचने लगी और निम्न पंक्तियां लिखतीं चली गई । 

गजल : आजकल रिश्ते बेगाने से लगते हैं 

"यारों की महफ़िल" गुजरे जमाने से लगते हैं 
सारे रिश्ते नाते  आजकल  बेगाने से लगते हैं 

अजनबियों सा लगने लगा है यह शहर "दिव्या" 
सारे मौहल्ले गली चौराहे  अनजाने से लगते हैं 

एक भयानक से खौफ में  जी रहे हैं सभी लोग 
पागलों सी हरकत करते हुए दीवाने से लगते हैं 

वो भी क्या दिन थे जब बारात में खूब नाचते थे 
अब तो वो सब दिन गुजरे हुए जमाने से लगते हैं 

जहां कभी पैर रखने को भी  जगह नहीं होती थी 
अब वो मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे वीराने से लगते हैं 

मौत होने पर भी किसी से मिलने नहीं जा सकते
मोबाइल से शोक संदेश ही अब तराने से लगते हैं 

आशा प्रतिलिपि पर दिव्या नाम से ही लिखती थी । उसने यह गजल पोस्ट कर दी । गजल सबको बहुत पसंद आई । दिव्या की कुछ सहेलियां बन गई थीं साहित्यिक एप पर । वे सब उसे दी कहकर बुलाती थीं । पता नहीं आजकल ये कैसा चलन चला है जो सब कुछ शॉर्ट में बोलना लोगों को अच्छा लगने लगा है । दीदी कौन कहे जब दी से काम चल जाता है । हसबैंड हबी हो गए और वाइफ बेबी हो गई । सास के लिए ढ़ूंढ़ रहे हैं कोई अच्छा सा शब्द । अगर मिल जाये तो बता देना । तो आशा की सहेलियों ने इस गजल पर  बहुत अच्छे अच्छे कमेंट लिखे थे । मगर उसे तो एक कमेंट का इंतजार था कि "वो" कमेंट में क्या लिखते हैं ? 

उसने सबके लिए चाय वगैरह तैयार की और सब लोग चाय पीने बैठ गये । आशा की भानजी नव्या से आशा की खुशियां छुप नहीं सकीं । पूछ बैठी "क्या बात है मौसी , आज तो आप हवा में उड़ रही हो । इस राज में हमें भी शामिल कर लो न । बताओ कौन है वो जिसको दिमाग में लिए लिए चांद की तरह चमक रही हो और चिड़ियों की तरह फुदक रही हो" । 

" हट भूतनी । फ़ालतू की बात करती है" । अपनी हंसी छुपाते हुए आशा बोली । 

नव्या उसकी आंखों में आंखें डालकर बोली " मगर आंखें तो कुछ और ही बोल रही है मौसी । आप एक बात सुन लो हमसे , दाई के सामने पेट छुपता नही है , चाहे कितना भी छुपा लो । हम भी "इनको" अपने दिमाग में लिए लिए रहते थे सगाई के बाद । अतः हमें सब अनुभव है । इसलिए हमने आपकी चोरी पकड़ ली है" । 

आशा क्या कहती ? बस इतना ही कहा "एक बड़े लेखक हैं साहित्यिक एप पर । बहुत अच्छा लिखते हैं । बस , उनकी रचनाएं पढ़ पढ़ कर ही हंसी आ रही थी" । 

"मौसी, हमने भी यह खेल बहुत खेला है पहले । इसलिए हम आपके झांसे में आने वाले नहीं हैं । सीधे सीधे बता दो नहीं तो नानी से पूछ लेते हैं" । 

नानी का नाम सुनकर आशा सकते में आ गई और कहने लगी "पागल हो गई है क्या , भूतनी? ऐसी बातें मां से कहेगी " ? अचानक उसके मुंह से निकल गया। 

"ऐसी बातें ? कैसी बातें ? इसका मतलब है कि मेरा अनुमान सही निकला" । वह शरारती हंसी के साथ बोली । आशा को लगा कि अब नव्या से राज छुपाना अब असंभव है । इसलिए आशा ने नव्या को अपना राजदार बनाना ही उचित समझा । 

चाय पीकर और हंसी मजाक कर वह साहित्यिक एप खोलकर फिर बैठ गई कि क्या पता लव कुमार ने कोई टिप्पणी की हो ? देखा तो उनकी टिप्पणी थी वहां पर । लव कुमार ने लिखा था "वाह ! क्या खूब लिखा है आपने । कोरोना महामारी से उत्पन्न हुए हालातों का कितना सुन्दर वर्णन किया है आपने । लाजवाब । आज वास्तव में स्थिति ऐसी हो गई है कि हम किसी की मौत पर उसके यहां बैठने भी नहीं जा सकते हैं ? इससे ज्यादा बुरे दिन और क्या हो सकते हैं ? आपकी लेखन शैली अद्भुत है दिव्या जी" । आशा इस कमेंट को पढकर निहाल हो गई । उसे लगा कि उसने कोई महान गजल लिख मारी है । उसका मुखड़ा चांद सा खिल उठा ।

इस टिप्पणी को  वह न जाने कितनी बार पढ़ गई थी । उसने उसमें जवाब देते हुए लिखा "आपका बड़प्पन है सर, वरना तो हमें लिखना ही कहां आता है ? बस , आप जैसे बड़े लेखकों को पढ़ पढ़ कर कुछ कुछ लिखने का प्रयास कर रहे हैं " ? 

और अनगिनत ख्वाब सजाते हुए वह सो गई । दूसरे दिन उसने देखा कि उसके जवाब पर लव कुमार की टिप्पणी अंकित थीं " ऐसा नहीं है दिव्या जी । आप बहुत अच्छा लिखतीं हैं । यद्यपि कम लिखतीं हैं , मगर जो भी लिखतीं हैं , कमाल लिखतीं हैं " । 

वह उड़ने लगी । ख्वाबों और खयालों में । दिन काटे नहीं कट रहा था और लग रहा था कि जल्दी से दो बज जाएं और उनसे चैट हो । मगर घड़ी तो अपनी रफ़्तार से चलती है न , उसी रफ्तार से चल रही थी । किसी के चाहने से समय अपनी रफ्तार थोड़ी ना बदल देता है । यह तो मानव स्वभाव है कि अनुकूल परिस्थितियों में समय भागता सा लगता है और प्रतिकूल परिस्थितियों में रेंगता सा । 


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2 Comments

Seema Priyadarshini sahay

27-Jan-2022 09:30 PM

बहुत सुंदर भाग

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Shalu

07-Jan-2022 02:06 PM

Bahut acchi story h

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